रविवार 2 फ़रवरी 2025 - 05:50
बे गुनाह पर आरोप लगाना गंभीर पाप है

हौज़ा / यह आयत हमें सिखाती है कि हमें सदैव निष्पक्षता और ईमानदारी का परिचय देना चाहिए। अपनी गलतियों को स्वीकार करना और सुधार करना सही रास्ता है। किसी निर्दोष व्यक्ति पर आरोप लगाना न केवल पाप है, बल्कि समाज के लिए विनाशकारी भी है।

हौज़ा समाचार एजेंसी|

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम

وَمَنْ يَكْسِبْ خَطِيئَةً أَوْ إِثْمًا ثُمَّ يَرْمِ بِهِ بَرِيئًا فَقَدِ احْتَمَلَ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُبِينًا۔ व मय यकसिब खतीअतन औ इस्मन सुम्मा यरमे बेहि बरीअन फ़क़देह तमला बेहतानन व इस्मन मुबीना (नेसा 112)

अनुवाद: और जो कोई गलती या पाप करे और उसका दोष किसी दूसरे निर्दोष व्यक्ति पर डाले, तो वह बड़ी बदनामी और स्पष्ट पाप का दोषी है।

विषय:

इस आयत का मुख्य विषय न्याय, नैतिक जिम्मेदारी और बे गुनाह लोगों पर आरोप लगाने की गंभीरता है। इस आयत में परमेश्वर उन लोगों को चेतावनी दे रहा है जो अपने पापों या गलतियों के लिए दूसरों को दोष देते हैं।

पृष्ठभूमि:

यद्यपि इस आयत के नुज़ूल का कारण एक विशिष्ट घटना है, किन्तु इसका अनुप्रयोग सामान्य एवं सार्वभौमिक है, जो सभी लोगों पर लागू होता है। इसलिए, यह आयत स्पष्ट रूप से दिखाती है कि निंदा करना एक बड़ा पाप है। हमारे समाज में निंदा को पाप नहीं माना जाता, विशेषकर राजनीति में निंदा को आवश्यक माना जाता है।

तफ़सीर:

यह आयत एक ऐसे अपराध का उल्लेख करती है जो दैवीय और मानवीय दोनों मूल्यों से संबंधित है। इसका सम्बन्ध ईश्वरीय मूल्यों से है क्योंकि यह अल्लाह के आदेश की अवहेलना करना तथा गलती और पाप करना है। यह मानवीय मूल्यों से संबंधित है क्योंकि इसमें किसी बे गुनाह व्यक्ति को पाप के लिए दोषी ठहराया जाता है।

इस आयत में [बरीअन] का ज़िक्र तन्वीन तनकीर के साथ किया गया है, जिसका मतलब है: कोई निर्दोष। इसमें धर्म, राष्ट्र या समूह की कोई सीमा नहीं है। यहां तक ​​कि अगर इसे किसी यहूदी पर फेंका जाए तो भी यह स्पष्ट पाप है। इससे यह स्पष्ट है कि इस्लाम सभी मनुष्यों को मानवीय मूल्यों में समान अधिकार देता है और इस्लाम की दृष्टि में सभी मनुष्यों का सम्मान है, बशर्ते कि वे इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध कोई अपराध या अज्ञानता न करें।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1- न्याय का महत्व: इस्लाम में न्याय का मौलिक महत्व है। किसी निर्दोष व्यक्ति पर आरोप लगाना न केवल उसके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि इससे समाज में अराजकता भी फैलती है।

2. नैतिक जिम्मेदारी: प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यों की जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। अपनी गलतियों को छुपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ना बहुत बड़ा नैतिक अपराध है।

3. सामाजिक संबंध: निराधार आरोप समाज में संदेह, घृणा और रिश्तों के टूटने का कारण बनते हैं। इसलिए अल्लाह तआला ने इस प्रथा को सख्ती से मना किया है।

परिणाम:

यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें सदैव निष्पक्षता और ईमानदारी का परिचय देना चाहिए। अपनी गलतियों को स्वीकार करना और सुधार करना सही रास्ता है। किसी निर्दोष व्यक्ति पर आरोप लगाना न केवल पाप है, बल्कि समाज के लिए विनाशकारी भी है।

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सूर ए नेसा की तफ़सीर

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